आज के प्रगतिशील युग में न केवल बुज़ुर्ग ही प्रभावित हुए हैं, बच्चे भी प्रभावित हुए हैं। प्राचीनकाल में तनाव अधिकतर बुज़ुर्गों में ही देखा जा सकता था, परंतु अब यह स्कूल जाने वाले बच्चों में भी देखा जाने लगा है। बच्चों के अवसाद का मुख्य कारण या तो स्कूल का बोझ है या माता– पिता की डाँट। कभी – कभी अभिभावक यह नहीं समझते कि उनके बच्चे को क्या चाहिए। वे अपनी इच्छा उन पर थोपना शुरू कर देते हैं। यही कारण है कि बच्चे डिप्रेशन में आ जाते हैं और अकेलापन महसूस करने लगते हैं। इस स्थिति में बच्चे को नकारात्मक विचार आते हैं और उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता। इसके पीछे जो कारण देखने में आए हैं, उनमें से अभिभावकों का अपने बच्चों को समय न दे पाना मुख्य रूप से देखा गया है। आज की पढ़ाई– लिखाई का बोझ भी बच्चे के मन पर तनाव पैदा कर रहा है। अध्यापकों व अभिभावकों की डाँट से उन पर भावनात्मक दबाव पड़ता है। माता– पिता सदैव अपने बच्चों को कक्षा में प्रथम आने तथा अच्छे अंक लाने पर ज़ोर डालते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास बहुत कम हो जाता है। भविष्य की चिंता या पढ़ाई का तनाव बच्चों पर इतना रहता है कि उनके पास न तो खाने – पीने का समय होता है तथा न ही खेलकूद का।जब बच्चा अपने माता– पिता के बीच झगड़े होते देखता है, तो उसके कोमल मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और उसका बचपन खत्म हो जाता है। सभी अभिभावकों से मेरा अनरोध है कि वे अपने बच्चों के साथ अधिक – से– अधिक समय बिताएँ। उनकी ऐसी दिनचर्या बनाएँ कि वे किसी उपयोगी गतिविधि या अपनी रुचि में स्वयं को व्यस्त रखें। अपने बच्चों के साथ हर शाम व्यायाम करें तथा कहीं सैर करें। उस समय उनकी बातें सुनें, उनकी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ें। इस उम्र में बच्चों को माता– पिता की आवश्यकता होती है। जब वे अपने बच्चों के साथ समय नहीं बिताते, तो वे बाहर अपने दोस्त ढूँढ़ते हैं, जो उन्हें सही रास्ते पर चलने के लिए परामर्श देने में पूर्णतः अयोग्य होते हैं। अपने बच्चे के व्यवहार पर ध्यान दें। यदि अभिभावकों को लगता है कि आपका बच्चा इन दिनों अलग तरह से काम करता है, तो उसके मित्र बनें। उसकी भावनाओं पर विचार करें तथा उन्हें समझने का प्रयास करते हुए उनकी समस्याओं को दूर करें।